Budget में सरकार ने बदला एक शब्द, हाथ से फिसला Tax Credit… SC से मिली थी राहत, कारोबारियों से फिर छीन ली गई
ओडिशा के सफारी रिट्रीट पर आया था सुप्रीम कोर्ट का फैसला
अंग्रेजी के आर (ओआर) को बदलकर एंड (एएनडी) किया गया
देशभर के होटल, कोवर्किंग स्पेस जैसे सेक्टर के लिए बड़ा झटका
इंदौर-बजट प्रस्ताव में सरकार ने जीएसटी एक्ट के विशेष प्रावधान में सिर्फ एक शब्द को बदला और व्यावसायिक इमारत बनाकर किराए पर देने वालों की जेब में आई राहत निकल गई। खामोशी से किए गए इस छोटे-से बदलाव से टैक्स क्रेडिट की राहत फिसल गई है।
बीते साल अक्टूबर में ही सर्वोच्च न्यायालय के एक निर्णय की बदौलत यह राहत करदाताओं के हिस्से आई थी। सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया था कि व्यावसायिक भवनों के निर्माण के दौरान चुकाए गए टैक्स (जीएसटी) का आगे क्रेडिट लिया जा सकेगा। सरकार और जीएसटी विभाग तब भी टैक्स क्रेडिट देना नहीं चाहते थे।
देशभर में चर्चित हुआ था सफारी रिट्रीट केस
कोर्ट ने व्यावसायिक इमारतों को प्लांट यानी औद्योगिक यूनिट की तरह माना था, जो किराए पर देने के लिए निर्माण की जाती है। सफारी रिट्रीट केस के रूप में यह निर्णय देशभर में मशहूर हुआ था।
सरकार ने कानून में भूतलक्षी (रेट्रोस्पेक्टिव) प्रभाव से शब्द बदलकर राहत को शून्य कर दिया है। बजट यानी फाइनेंस बिल के बिंदु 119 में जीएसटी एक्ट के सेक्शन 17 के सब सेक्शन (5) के क्लाज (डी) में सरकार ने यह बदलाव प्रस्तावित किया है।
इसके अनुसार जीएसटी एक्ट के संबंधित प्रावधान में शब्द प्लांट अथवा मशीनरी लिखा था, उसे प्लांट और मशीनरी पढ़ा जाएगा। यानी सरकार ने एक्ट में लिखे अंग्रेजी के आर (ओआर) को बदलकर एंड (एएनडी) कर दिया है।
करदाता का भरोसा घटेगा
कर सलाहकार आरएस गोयल के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय से पहले ओडिशा हाई कोर्ट ने भी सफारी रिट्रीट के पक्ष में ही निर्णय दिया था। देशभर में इस निर्णय को मील का पत्थर माना गया। इससे व्यावसायिक भवन, प्लग एंड प्ले आफिस और वर्किंग स्पेस बनाकर किराए पर देने वालों के कंधों से टैक्स का बोझ कम हो रहा था।
जीएसटी विभाग किसी भी तरह का इनपुट टैक्स क्रेडिट देने से इन्कार कर दिया था, जबकि शासन खुद किराए पर 18 प्रतिशत जीएसटी वसूलता रहा है। करदाता ने इसलिए न्यायालय की शरण ली थी कि जिस भवन की कमाई पर जीएसटी देना है तो उसके निर्माण पर चुकाए जीएसटी की क्रेडिट भी मिलनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने ओडिशा के सफारी रिट्रीट नामक होटल निर्माताओं की याचिका पर निर्णय दिया था कि ऐसे भवनों के निर्माण के समय सीमेंट, सरिया व अन्य मटेरियल से लेकर लेबर तक पर जो जीएसटी संबंधित निर्माणकर्ता चुकाता है, आगे जब उसे अपनी किराये की कमाई पर जीएसटी की देयता आती है तो वह निर्माण के समय चुकाए जीएसटी का क्रेडिट ले सकेगा।
सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसे व्यावसायिक भवनों को औद्योगिक इकाई की तरह माना था। न्यायालय का यह निर्णय जीएसटी एक्ट में लिखे वाक्यों पर ही आधारित था। जीएसटी एक्ट में सरकार ने कई जगह प्लांट आर (अथवा) मशीनरी लिखा था।
जीएसटी विभाग कहता रहा कि इनपुट टैक्स क्रेडिट उसी स्थिति में दिया जाता, जब ऐसा भवन कोई प्लांट या मशीनरी होता। इसे सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन माना।
सर्वोच्च न्यायालय का पूरा निर्णय एक्ट में लिखे ‘आर’ यानी ‘अथवा’ शब्द पर ही था। बजट में उसी शब्द को बदल दिया गया। यानी टैक्स क्रेडिट जो अब तक करदाताओं की जेब में जाती दिख रही थी, वापस छीन ली गई है।