Mallikarjun Temple: जानें कैसे हुई थी मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की स्थापना, शिव परिवार से है संबंध, पढ़ें पौराणिक कथा
भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग स्थापित है। इनमें से मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग दूसरे स्थान पर आता है। यह आंध्र प्रदेश आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैल पर्वत पर स्थित है। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का उल्लेख स्कंद पुराण में भी मिलता है। मल्लिकार्जुन मना भगवान शिव को माता पार्वती के नाम पर पड़ा है। मल्लिका यानी माता पार्वती, जबकि अर्जुन भगवान शंकर को कहा जाता है।
HIGHLIGHTS
- हिंदू धर्म में मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का है विशेष महत्व
- कार्तिकेय के जाने के बाद प्रकट हुआ था यह ज्योतिर्लिंग
- माता-पिता से नाराज होकर चले गए थे भगवान कार्तिकेय
Mallikarjun Temple धर्म डेस्क, इंदौर :- सावन माह कल यानी सोमवार से शुरू होने जा रहा है। इस माह भगवान शिव का विशेष पूजन करने के साथ ही मंदिरों में विशेष अनुष्ठान किए जाते है। साथ कांवड़ यात्रा भी निकाली जाती है।
इस माह शिव मंदिरों में जाना शुभ माना गया है। वैसे तो भारत में महादेव के कई मंदिर है, लेकिन ज्योतिर्लिंग का इन सभी में विशेष महत्व है। प्रत्येक ज्योतिर्लिंग से पौराणिक कथा जुड़ी है। यहां आपको भगवान शिव के दूसरे ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुन से जुड़ी पौराणिक कथा और इसके महत्व के बारे में बताते हैं।
क्या है कथा
हिंदू पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान गणेश और कार्तिकेय ने भगवान शिव और मां पार्वती के समक्ष उनका विवाह करवाने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन दुविधा यह थी कि किसका विवाह पहले करवाया जाए। ऐसे में महादेव और मां पार्वती ने दोनों के सामने शर्त रखी कि तो पहले पृथ्वी के तीन चक्कर लगाकर आएगा, सबसे पहले उसी का विवाह होगा।
कार्तिकेय परिक्रमा के लिए निकले
भोलेनाथ और मां पार्वती की इस शर्त का पता लगते ही कार्तिकेय पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल गए, लेकिन भगवान गणेश वहीं रुक गए। भगवान गणेश ने अपनी बुद्धि का उपयोग किया और अपने माता-पिता को पृथ्वी मानकर तीन परिक्रमा लगा ली।
भगवान गणेश का हुआ विवाह
भगवान गणेश की चतुर बुद्धि को देखकर माता पार्वती और शिव जी ने उनका विवाह विश्वरूप प्रजापति की पुत्रियों के साथ करवाया। वहीं, तब कार्तिकेय पृथ्वी की परिक्रमा कर लौटे तो उन्हें इस विवाह के बारे में पता चला और वे नाराज हो गए और और माता-पिता के चरण छूकर वहां से चले गए और क्रौंच पर्वत पर निवास करने लगे।
ऐसे हुई ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति
कार्तिकेय की नाराजगी के बाद भगवान शिव और मां पार्वती ने देवर्षि नारद को उन्हें मनाने के लिए भेजा, लेकिन वे नहीं माने। इसके बाद माता पार्वती कार्तिकेय को लेने पहुंचीं, लेकिन कार्तिकेय वहां से पलायन कर गए। इस बात से माता पार्वती हताश हो गई और वहीं बैठ गईं। इसके बाद वहां भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए और इस शिवलिंग को मल्लिकार्जुन के नाम से जाना जाने लगा।