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पांच माह बाद बदल जाएगी नगर सरकार, योजनाओं की प्लानिंग में कमी से केवल पैसों की बर्बादी

पांच माह बाद बदल जाएगी नगर सरकार, नगर पालिका के जिम्मेदारों को नहीं सरोकार, नगर पालिका की ये योजनाएं बिना प्लानिंग के काम, मेंटनेंस का अभाव और जिम्मेदारों के द्वारा मुंह मोड़ लिए जाने के कारण केवल शासन के पैसों की बर्बादी ही है। विकास कार्य के नाम पर सिर्फ राशि खर्च की गई है। मगर उसका लाभ लोगों को नहीं मिल रहा है।

 जिला मुख्यालय जांजगीर में भी बड़े शहरों की तर्ज पर विभिन्न निर्माण कार्यों में जिम्मेदारों ने लाखों – करोडों रुपए खर्च तो कर दिए हैं लेकिन पूरा होने के बाद भी वह उपयोगी नहीं है। कुछ कार्यों का निर्माण हुए तो पांच से दस साल हो गए लेकिन इसका फायदा आज तक लोगों को नहीं मिल पाई। धरातल पर ये योजनाएं आज भी नहीं उतर पाई। इसमें व्यवसाय, साफ – सफाई, पेयजल , मनोरंजन से जुड़ी योजनाएं हैं। पांच माह बाद नगर सरकार बदल जाएगी और नई सरकार बन जाएगी।

मगर नगर पालिका के जिम्मेदारों की कार्यशैली को देखते हुए नहीं लग रहा है कि तब भी जो निर्माण पूरे हो गए हैं उसका लाभ शहरवासियों को मिल पाएगा। नगर पालिका की ये योजनाएं बिना प्लानिंग के काम, मेंटनेंस का अभाव और जिम्मेदारों के द्वारा मुंह मोड़ लिए जाने के कारण केवल शासन के पैसों की बर्बादी ही है। विकास कार्य के नाम पर सिर्फ राशि खर्च की गई है। मगर उसका लाभ लोगों को नहीं मिल रहा है।

जबकि सभी निर्माण कार्य आम लोगों से जुड़े हुए हैं। सुचारू रूप से संचालन होता तो आम जनता को निश्चित रूप से इसका लाभ मिलता, उनकी कई समस्याएं सुलझ जाती। नगर पालिका परिषद द्वारा पौनी पसारी, एसएलआरएम सेंटर, वाटर एटीएम, सिटी स्टापेज, मोटर बोटिंग जैसे प्रोजेक्ट शुरू किए गए लेकिन इसका फायदा आम आदमी को नहीं मिल रहा है।

अगर जिम्मेदारों के द्वारा इन कामों को पूर्ण करने के बाद इसको सुचारू रूप से चलाने की ओर में ध्यान दिया जाता तो जिला मुख्यालय जांजगीर की जिले में अलग पहचान भी बनती। मगर शहरवासियों को फायदा मिलने के बजाए ये आम जनता के लिए केवल हाथी के दांत जैसे साबित हो रहे हैं। पांच माह बाद नगरीय निकाय चुनाव होंगे मगर नगर पालिका के जिम्मेदारों की कार्यशैली को देखते हुए नहीं लग रहा है कि तब भी जो निर्माण पूरे हो गए हैं उसका लाभ शहरवासियों को मिल पाएगा।

क्योंकि कुछ कार्यों का निर्माण हुए तो पांच से दस साल हो गए लेकिन इसका फायदा आज तक लोगों को नहीं मिल पाई है। एसएलआरएम सेंटर शहर में मिशन क्लीन सिटी के तहत नपा में चार एसएलआरएम सेंटर सेंटर बनना था। इनमें से एक एसएलआरएम सेंटर को नपा ने शहर से दूर पेण्ड्री गांव की जमीन पर ही बना दिया गया। शहर से दूर होने के कारण आज तीन साल बाद भी यह एलएलआरएम शुरू नहीं हो सका है।

जिसके चलते एसएलआरएम सेंटर खंडहर हो रहा हैं। सीएमओ से लेकर नगरपालिका अध्यक्ष इसे शुरू कराने केवल खोखली बातें करते रहे। इसमें केवल शासन के पैसे की बर्बादी बस हुई है। वाटर एटीएम यही हाल शहर में लोगों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने की मंशा से लगाए गए वाटर एटीएम मशीनों का भी है। कचहरी चौक, नया बस स्टैंड में लाखों रुपए खर्च कर वाटर एटीएम लगाया गया है।

सिक्के डालने से पैसा मिलने जैसे नई सुविधाएं शुरू हुई तो लोगों को भी लगा कि अब शहर विकास की ओर है। मगर चंद दिनों से यह ज्यादा नहीं चला। बिना प्लानिंग गलत स्थान पर बनाने का नतीजा, यह केवल शोपीस बन चुका है।

पौनी पसारी

फुटकर व्यवसाय को बढावा देने और व्यवसासियों को बेहतर स्थान देने की मंशा से पूर्ववर्ती कांग्रेस ने पौनी पसारी की योजना बनाई। इसी कडी में जांजगीर – नैला निकाय को भी दो स्थानों पर पौनी पसारी बनाने 25-25 लाख मिले। लेदेकर नपा वार्ड क्रमांक 1 में पौनी पसारी बना पाया मगर निर्माण पूर्ण के सालभर बाद भी खंडहर की तरह पड़ा है। दुकानें में लगाए लोहे के दरवाजे टूटने- फूटने लगे हैं। शराबियों के जाम छलकाने के काम आ रहा है। सिटी

बस स्टापेज

सिटी बस की सुविधा शुरू होने पर शहर के सात स्थानों पर चार चार लाख रुपए खर्च कर स्टापेज पाइंट तो बना दिया मगर सिटी बसेंचलना बंद होते ही इसका उपयोग भी बंद हो गया। सिटी बसेंनहीं चलनेसे बनाए गए स्टापेज जर्जर हो रहे हैं। यहां लगी कुर्सियां टूट गई है। उसकी देखरेख के तरफ भी नगर पालिका के द्वारा कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। हालांकि दैनिक यात्री बसे चलती हैंं ऐसे में यहां अगर उन बसों को रोकने इंतजाम किए जाए तो अभी भी आम जनता के लिए सुविधा साबित हो सकती है।

भीमा तालाब में मोटर बोटिंग

शहर के ऐतिहासिक भीमा तालाब का छह करोड़ रूपये की लागत से सुंदरीकरण कराया गया है। पहली बार लोगों को बोटिंग करने का मौका मिला। मोटर बोटिंग की शुरूआत की गई। शुरूआत में इसको लेकर लोगों में जबरदस्त उत्साह था। मगर पर्यटन के हिसाब से लोगों के लिए घूमने-फिरने लायक कोई नवाचार नहीं हुआ। लिहाजा लोगों ने दूरी बना ली। अब मोटर बोट धूल खाते पड़े हैं। बोटिंग पूरी तरह से ठप है। इसी तरह भीमा तालाब और बीडीएम उद्यान परिसर में बनाई गई बापू की कुटिया निर्माण के बाद से बेकार पडा हुआ है।

बुधवारी बाजार का चबूतरा

पांच दशक बाद भी शहर में स्थाई सब्जी मार्केट नहीं है। इसके चलते थोक और चिल्हर सब्जी विक्रेताओं को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। साप्ताहिक बुधवारी बाजार के लिए दस साल पहले 50 लाख रुपए खर्च कर चबूतरा जरूर बनाया गया है। बनाए गए शेडयुक्त चबूतरों में से ले- देकर दो- चार चबूतरों में ही साप्ताहिक बाजार के दिन व्यवसायी दुकानें लगाते हैं। बाकी दिनों में चबूतरा खाली पड़े रहते हैं। आज तक वहां दुकानें नहीं लगी और न ही कभी नपा ने लगवाने का प्रयास किया। सभी चबूतरों के फर्श के नामों निशान तक मिट गए हैं। जिन चबूतरों में दुकानें लगनी चाहिए मगर लोग वहां गोबर के कंडे सूखा रहे हैं।

Upendra Pandey

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