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खराब चीजों के विज्ञापन पर लगाम लगाने की योजना 7 साल पहले बनी थी, लेकिन आज भी नतीजा ढाक के तीन पात

खाने-पीने की खराब चीजों के विज्ञापन पर रोक लगाने के लिए आज से सात साल पहले साल 2017 में एक कार्य योजना सरकार ने बनाई थी। इस योजना का उद्देश्य ऐसे विज्ञापनों को रोकना था जो लोगों को गुमराह करते हैं। इसमें भी खासतौर से ऐसे विज्ञापन जो महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य पर खराब असर डालते हैं।
सरकार ने आज से सात साल पहले गैर-संक्रामक बीमारियों की रोकथाम और नियंत्रण के लिए एक कार्य योजना बनाई थी। इस योजना में खासतौर पर बच्चों को खानपान की खराब चीजों के विज्ञापन और उनके प्रचार पर सख्ती से कार्रवाई की बात कही थी। लेकिन इतने साल बीत जाने के बाद भी इसपर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भी अस्वास्थ्यकर खाने के विज्ञापनों का मुद्दा उठाया था।
कोर्ट ने पतंजलि के गुमराह करने वाले विज्ञापनों पर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि इस दायरे को बढ़ाया जाए, जिससे उन सभी विज्ञापनों को शामिल किया जा सके जो लोगों को गुमराह करते हैं। खासतौर से ऐसे विज्ञापन जो बच्चों और महिलाओं के स्वास्थ्य पर बुरा असर डालते हैं, जो गलत जानकारी के आधार पर इन प्रोडक्ट्स का यूज कर रहे हैं।

सौंपी गई थी जिम्मेदारी
सरकार की साल 2017 वाली कार्य योजना में कई मंत्रालयों को जिम्मेदारियां सौंपी गई थीं। जैसे कि सूचना और प्रसारण मंत्रालय, वाणिज्य मंत्रालय, उपभोक्ता मामले और खाद्य वितरण मंत्रालय, कानून मंत्रालय और स्वास्थ्य मंत्रालय। इन मंत्रालयों को मिलकर काम करके अस्वास्थ्यकर खान-पान की चीज़ों (जैसे कि मैगी, कोल्ड ड्रिंक्स, चिप्स आदि), शराब और तंबाकू के विज्ञापनों को नियंत्रित करना था।

स्वास्थ्य मंत्रालय के अंतर्गत आने वाला खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) को पैकेट के सामने ही पोषण संबंधी जानकारी देना और डिब्बे के पीछे विस्तृत जानकारी देना अनिवार्य करना था, लेकिन अब तक इनमें से कोई खास काम नहीं हुआ है। कई विशेषज्ञों का कहना है कि स्वास्थ्य मंत्रालय ने जवाब दिया था कि इस योजना पर नियमित बैठकें होती हैं, लेकिन बैठकों का कोई भी नतीजा नहीं निकला था।

Upendra Pandey

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