Breaking Newsअंतरराष्ट्रीयअन्य ख़बरेंछत्तीसगढरायपुर

Ground Report: आजादी के 77 साल बाद भी नमक-राशन के लिए जान दांव पर लगा रहे छत्तीसगढ़ के आदिवासी… मीनूर गांव में न बिजली, न सड़क

बारिश के दिनों में नदियां उफान पर होने से लोगों को परेशानी होती है, लेकिन क्या कल्पना की जा सकती है कि किसी गांव में राशन के लिए नदी पार करते लोगों की जिंदगियां बीत गईं। यही सच्चाई है छत्तीसगढ़ के मीनूर समेत कई गावों की। यहां राशन और नमक के लिए लोग हर रोज अपनी जान पर खेलते हैं।

HIGHLIGHTS

  • जगदलपुर से 250 किमी दूर स्थित है मीनूर गांव
  • नदी पर पुल नहीं होने से आदिवासी होते हैं परेशान
  • प्रशासन नदी पार गांव तक पहुंचा देता है राशन

अय्यूब खान, बीजापुर (Chhattisgarh tribal village):- छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की स्थिति पर सरकार की आंखें खोलने वाली ग्राउंड रिपोर्ट सामने आई है। बस्तर के संभागीय मुख्यालय जगदलपुर से 250 किमी दूर स्थित बीजापुर जिले के गांव मीनूर में ग्रामीणों की भूख और पेट भरने के बीच में चिंतावागु नदी आ रही है। मीनूर के ग्रामीण नमक और चावल के लिए आठ किमी की यात्रा करने के बाद उफनती नदी को पार करने के बाद राशन हासिल कर पाते हैं।

नदी के उस पार गोरला गांव है। प्रशासन भी मीनूर के लोगों का राशन गोरला गांव तक पहुंचाकर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर देता है। इसके बाद पूरी जद्दोजहद ग्रामीण करते हैं।

ये लोग बड़े-बड़े बर्तन (स्थानीय भाषा में जिन्हें गंज कहते हैं) लेकर नदी पार करते हैं, ताकि राशन पानी में खराब न हो। इस दौरान हादसे भी होते रहते हैं। पिछले दिनों की डूबकर एक युवक की मौत हुई।


गांव में 170 परिवार रहते हैं। गांव धुर नक्सल प्रभावित इलाके में आता है। लोग खाना पकाने के बड़े से बर्तन में राशन का सामान लेकर नदी पार करते दिखे। ग्रामीणों ने बताया कि कई वर्ष से वे इसी तरह राशन लेने आते हैं।

सुबह घर से राशन लेने निकले थे। अब शाम के चार बज चुके हैं। बर्तन में राशन भरकर गांव के युवक नदी पार करने में सहायता कर रहे हैं। – गोपक्का यालम, ग्रामीण
धान खरीदने पटनम गई थी, आते-आते शाम हो गई है। अब इंतजार कर रही हूं कि किसी तरह नदी पार कर सकूं और अंधेरा होने से पहले घर पहुंच सकूं। – शुक्रबाई कुरसम, ग्रामीण
मेरी उम्र 67 साल है और मैं बचपन से यही स्थिति देख रहा हूं। सालों से हम पुल निर्माण की मांग कर रहे हैं, पर इस ओर कोई ध्यान नहीं देता है। – मट्टी चन्द्रय्या, ग्रामीण

कलेक्टर ने दिलाया भरोसा, ‘जल्द बनेगा पुल’
बीजापुर कलेक्टर अनुराग पांडेय ने कहा, ‘बारिश में गांव से सड़क का सम्पर्क टूट जाता है। इसलिए निकटतम पंचायतों में राशन पहुंचाने की व्यवस्था की गई है। जिले में 53 पंचायत में चार माह का राशन पहुंचा दिया गया है। मिनूर गांव का राशन गोरला पंचायत में रखवाया गया है। ग्रामीणों से शिकायत मिली है। समस्या के समाधान के लिए चिंतावागु नदी पर आठ करोड़ रुपये की लागत से पुलिया निर्माण के लिए प्रशासकीय स्वीकृति शासन से मांगी गई है।’

छत्तीसगढ़ के इन गावों में भी ऐसे ही हाल
चिंतावागु नदी उफान पर होने से एंजोडा, तमलापल्ली, नयापुरा, मुत्तापुर, मामड़गुडा़, गोरगुड़ा, पोषणल्ली समेत कई गांव टापू बन जाते हैं।

मिंगाचल नदी के उस पार के कमकानार, गोगंला, चोखनपाल, मेटापाल, पदमुर, जारगोया, पेद्दाजोजेर सहित दर्जनों गांव में यहीं स्थिति है।

न पक्की सड़क, न बिजली
भोपालपटनम तहसील के अंतर्गत आने वाले मीनूर गांव तक पक्की सड़क नहीं है।
लाइन बिछी है, पर अधिकतर बिजली गुल रहती है, लो-वोल्टेज की भी समस्या है।
गांव में अस्पताल नहीं है। मरीज को बड़े बर्तन में बिठाकर गोरला तक ले जाते हैं।

Upendra Pandey

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button