My Law: सुप्रीम कोर्ट ने बेनामी संपत्ति को लेकर स्पष्ट किया है कानून
अधिवक्ता सोनल ताम्रकार ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा बेनामी संपत्ति के सिलसिले में स्पष्ट किए गए कानूनी सिद्धांत की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि चूंकि बेनामी संपत्ति पर दावा लागू करने के लिए सिविल मुकदमा वर्जित है, लिहाजा असली मालिक द्वारा आपराधिक कार्रवाई भी अस्वीकार्य है।
बिलासपुर। मेरा कानून: दरअसल बेनामी अधिनियम से संबंधित फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बेनामी संपत्ति का मालिक होने का दावा करने वाला व्यक्ति संबंधित के विरुद्ध मुकदमा कार्यवाही नहीं कर सकता, जिसके नाम पर संपत्तियां हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में साफ किया है कि शिकायतकर्ता यानि बेनामी संपत्ति का मालिक होने का दावा करने वाला व्यक्ति भूमि सौदों में निवेश करने के बावजूद, जो स्पष्ट रूप से बेनामी लेन-देन थे, उस व्यक्ति के विरुद्ध वसूली के लिए कोई नागरिक कार्यवाही शुरू नहीं कर सका, जिनके नाम पर संपत्तियां हैं।
न्यायालय ने यह भी माना कि आरोपों के एक ही सेट पर आपराधिक कार्रवाई भी चलने योग्य नहीं है। बेनामी संपत्ति में किए गए निवेश को वापस करने में कथित विफलता पर भारतीय दंड संहिता की धारा 406 और 420 के तहत आपराधिक कार्रवाई रद करते हुए न्यायालय ने कहा कि चूंकि बेनामी अधिनियम की धारा 4 (1) और 4 (2) में निहित प्रविधानों के आधार पर शिकायतकर्ता को इन बेनामी लेनदेन के संबंध में नागरिक गलती के लिए आरोपित पर मुकदमा चलाने से प्रतिबंधित किया गया।
परिणामस्वरूप, आपराधिक अनुमति दी जा सकती है, कार्रवाई के स्वयं-समान कारण के संबंध में अभियुक्त पर मुकदमा चलाने की कानून में अनुमति नहीं होगी। बेनामी लेनदेन (निषेध), अधिनियम 1988 (बेनामी अधिनियम) की धारा चार उस व्यक्ति के अधिकार को रोकती है, जिसने बेनामी मानी गई संपत्ति को पुनर्प्राप्त करने के लिए प्रतिफल का भुगतान किया। उन्हें किसी भी संपत्ति के संबंध में किसी भी अधिकार के आधार पर बचाव करने से रोकता है या तो उस व्यक्ति के विरुद्ध बेनामी ठहराया गया,
जिसके नाम पर संपत्ति है या किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध है। वर्तमान मामले में जब प्रतिवादी सरकारी क्षेत्र में काम कर रही थी, तब उसने कुछ संपत्ति खरीदी। हालांकि यह खरीदारी अपीलकर्ता के नाम पर की गई, जिसने प्रतिवादी पर संपत्ति में निवेश करने के लिए जोर दिया। संपत्ति के प्रतिफल का भुगतान प्रतिवादी द्वारा किया गया।
हालांकि, संपत्ति अपीलकर्ता के नाम पर थी, क्योंकि प्रतिवादी अपनी सरकारी नौकरी के कारण अपने नाम पर संपत्ति नहीं खरीदना चाहती थी। इस बीच जब प्रतिवादी और अपीलकर्ता के बीच विवाद हुआ, जहां प्रतिवादी द्वारा यह आरोप लगाया गया कि अपीलकर्ता द्वारा रखी गई भूमि में लाभ का उचित हिस्सा उसे नहीं दिया गया। इसलिए अपीलकर्ता के खिलाफ आपराधिक शिकायत दर्ज की गई।
यह जानना भी है जरुरी
अधिवक्ता सोनल ताम्रकार- ने बताया कि प्रतिवादी शिकायतकर्ता द्वारा आइपीसी की धारा 406 और 420 के तहत आरोपित बनाया गया। बेनामी अधिनियम की धारा चार पर भरोसा करते हुए कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि बेनामी अधिनियम की धारा 4 (1) और 4 (2) में निहित प्रविधानों के आधार पर शिकायतकर्ता को आपराधिक शुरुआत करने से प्रतिबंधित किया गया है।
इसके अलावा अदालत ने कहा कि इसके लिए आपराधिक कार्रवाई शुरू करना भी अस्वीकार्य है। अदालत ने माना कि बेनामी अधिनियम की धारा चार के तहत निहित रोक के मद्देनजर अपीलकर्ता द्वारा रखी गई बेनामी संपत्ति से लाभ की वसूली के संबंध में नागरिक कार्रवाई शुरू करने की भी अनुमति नहीं होगी।