उज्जैन में वैकुंठ चतुर्दशी की रात हुआ हरि-हर का मिलन, भस्मारती में महाकाल से मिलने पहुंचे साक्षी गोपाल
उज्जैन :- ‘अब सौंप दिया इस सृष्टि का सब भार तुम्हारे हाथों में…’ कुछ इसी तरह के भजनों के मध्य धर्मधानी उज्जैन में हरि हर मिलन की अद्भुत परंपरा निभाई गई। गुरुवार -शुक्रवार की मध्य रात्रि में अवंतिकानाथ राजा महाकाल ठाठ के साथ सवारी लिए भगवान विष्णु के स्वरूप गोपाल जी से भेंट करने पहुंचे। चातुर्मास समापन पर हर ने हरि को सृष्टि का भार सौंपा। यह दिव्य दृश्य निहारने के लिए आस्था मध्य रात्रि तक उल्लास के साथ प्रतीक्षारत रही।
धार्मिक मान्यता के अनुसार वामन अवतार के समय भगवान विष्णु ने राजा बलि को उनका आतिथ्य स्वीकार करने का वचन दिया था। धर्मशास्त्र की मान्यता के अनुसार उसी वचन को निभाने के लिए भगवान विष्णु चातुर्मास के चार माह पाताल लोक में राजा बलि के यहां अतिथि बनकर व्यतित करते हैं, इस दौरान सृष्टि के संचालन का भार भगवान शिव के हाथ में रहता है।
देव प्रबोधिनी एकादशी पर चातुर्मास का समापन होता है और भगवान विष्णु पुन: वैकुंठ पधारते हैं। इसके तीन दिन बात भगवान शिव वैकुंठ चतुर्दशी पर भगवान श्री हरि विष्णु को पुन: सृष्टि का भार सौंपने गोलोक जाते हैं। हर के हरि से मिलने जाने के इसी धर्म प्रसंग को हरि हर मिलन कहा जाता है।
श्री शिव महापुराण व विष्णु पुराण में उल्लेख
ज्योतिषाचार्य पं.अमर डब्बावाला ने बताया श्री शिव महापुराण व विष्णु पुराण के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी व चतुर्दशी के संधी काल में हरि हर मिलन की मान्यता है। इसलिए मध्य रात्रि में हरिहर मिलन का यह प्रभाव मुख्यतः अवंतिका तीर्थ क्षेत्र पर ज्यादा दिखाई देता है।
हालांकि संपूर्ण पृथ्वी पर हरि हर मिलन की यह मध्य रात्रि सभी पुराणों में आंशिक रूप से विद्यमान है। किंतु अवंतिका तीर्थ पर इसका प्रभाव इसलिए विशेष हो जाता है क्योंकि यहां पर ज्योतिर्लिंग और भगवान नारायण के प्रकट स्थलों के रूप में सप्त सागर व नौ नारायण विद्यमान हैं। इस दृष्टि से यहां की मान्यता विशेष है।
100 साल पुरानी है परंपरा
महाकाल मंदिर के पं.महेश पुजारी ने बताया सिंधिया देव स्थान ट्रस्ट के श्री द्वारकाधीश गोपाल मंदिर में हरि हर मिलन की परंपरा सौ साल से पुरानी है। सिंधिया स्टेट के समय से ही इसका निर्वहन किया जा रहा है। हर साल यहां मध्य रात्रि 12 बजे हरि हर मिलन कराया जाता है। पूजा अर्चना के उपरांत रात भगवान महाकाल की सवारी गोपाल मंदिर से पुन: महाकाल मंदिर के लिए रवाना हुई।